कला केवल अपने भावों की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि प्रदेश के गौरव और अभिमान का प्रमाण है । उन्हीं में से एक है - भील।
भील भारत में दूसरा सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है, जो मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में रहते हैं।
कुछ भील महाभारत के धनुर्धर एकलव्य से अपने वंश का संबंध बताते हैं, जबकि कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि रामायण लिखने वाले वाल्मीकि भी भील थे।
परंपरागत रूप से, भील जनजाति की कला उनके गांव के घरों की मिट्टी की दीवारों को सजाने का जरिया थी।
नीम की छड़ियों और अन्य टहनियों से सुंदर चित्रों को चित्रित कर उन्हें प्राकृतिक रंगों से भरा जाता था।
हल्दी, आटा, सब्जियां, पत्ते और तेल का उपयोग शानदार रंगों को प्राप्त करने के लिए तथा फर्श और दीवारों पर आकर्षक भित्तिचित्र बनाने के लिए, भीलों द्वारा बनाई गई भाषा में, अपने अनुभवों को व्यक्त करने के लिए किया गया ।
अगर किसी भील चित्रकला पर ध्यान दें तो आप तुरंत इसे कला रूप को देखने के लिए कहीं भी पहचानना शुरू कर देंगे।
भील चित्रों में आम तौर पर मिट्टी और चमकीले रंगों से भरे रोजमर्रा के पात्रों के बड़े, गैर-सजीव आकार होते हैं, और फिर कई पैटर्न और रंगों में समान बिंदुओं के एक ओवरले के साथ कवर किया जाता है जो पृष्ठभूमि के विपरीत बेहद आकर्षित प्रतीत होते हैं।
भील पेंटिंग पर डॉट्स अथवा बिंदु यादृच्छिक नहीं है बल्कि वह साथ में प्रतिरुप बनाते हैं जो किसी भी चीज़ का प्रतिनिधित्व करने के लिए बनाया जा सकता है जो कलाकार पूर्वजों से लेकर देवताओं तक किसी का भी प्रतिनिधित्व करने में समर्थ हैं।
चुकिं ये कला के प्रतिरुप पूरी तरह से उनको बनाने वाले कलाकारों के हाथों में हैं, हर भील कलाकार का काम इस कला की तरह हीं अद्वितीय और अनोखा है, और कई बार डॉट पैटर्न को कलाकार की हस्ताक्षर शैली के रूप में जाना जा सकता है।
भील कला सहज और मौलिक है, जो प्रकृति के साथ एक प्राचीन संबंध से पैदा हुई है।
भील मूलत: बड़े पैमाने पर एक कृषि समुदाय हैं, जिनका जीवन उस भूमि के आसपास केंद्रित है, जिसके साथ वे प्रतिदिन काम करते हैं।
इस कला की सबसे खास बात यह है कि इसे धरोहर के रूप में हर पीढ़ी को सौंपा जाता है, खासकर माँ से बेटियों तक। भील कला भी अक्सर कर्मकांडी होती है।
हर पेंटिंग लोगों, जानवरों, कीड़ों, देवताओं, त्योहारों के चित्रण के माध्यम से बताई गई भूमि की कहानी है।
यहां तक कि सूर्य और चंद्रमा भी कहानियों के अक्सर पात्र होते हैं।
भील चित्रों के माध्यम से किंवदंतियों और विद्या को बताया जाता है।
जन्म और मृत्यु दर्ज की जाती है।
धार्मिक अवसरों को याद किया। इन चित्रों को त्योहारों के समय देवी-देवताओं को उपहार के रूप में भी चढ़ाया जाता है।
भील उदाहरण है हमारी अद्वितीय परंपरा और विरासत का जो कि कथाओं और नायाब सीखों को एक बेशकीमती धागे में पिरोता है।
Author: Tanya Saraswati
Editor: Rachita Biswas
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woah! I never knew about such an amazing form of art! It blows my mind that something like this exists in India.