हिन्दू और बौद्धिक गूढ़ परंपराओं को तंत्र कहा जाता है, और तांत्रिक यानी जो तंत्र-शास्त्र से संबंधित हो। ठीक इसी तरह, मधुबनी कला की तांत्रिक शैली धार्मिक ग्रंथों, पात्रों, और अन्य तांत्रिक प्रतीकों पर आधारित है।
मैथिली समाज में ज़्यादातर उत्सव तंत्र से ही जुड़े होते हैं। यही कारण है कि वहाँ विवाह, उपनयन और मुंडन जैसे विशेष अवसरों पर तांत्रिक चित्रकला बनाई जाती है। विषयों में महाकाली, महासरस्वती, महादुर्गा, महालक्ष्मी, महागणेश, पंचमुख शिव, अर्धनारीश्वर और गुरु-शिष्य परंपराओं के प्रदर्शन शामिल हैं। नयनयोगिनी मैथिली समाज और मधुबनी कला में सबसे लोकप्रिय और पवित्र तांत्रिक शक्तियों में से एक है। शादियों के दौरान, उन्हें घर के चारों कोनों पर चित्रित किया जाता है और उनकी उपस्थिति को बुराइयों से लड़ने और दंपति को संकट से बचाने के लिए आवश्यक माना जाता है।
कृष्णानंद झा तांत्रिक पेंटिंग के क्षेत्र में सबसे प्रसिद्ध कलाकारों में से एक हैं। उनके पिता और दादा तंत्र अभ्यासी थे, और जब उन्हें स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद नौकरी नहीं मिली, तो उन्होंने अपनी डिग्री छोड़ दी और एक चित्रकार बनने की अपनी यात्रा शुरू की। उनके कार्यों में ज्यादातर व्तांत्रिक देवी-देवताओं के चित्रण शामिल हैं। उनकी सबसे उल्लेखनीय कृतियों में आनंद भैरव, तांत्रिक गुरु, कुंडलिनी योग और अन्य शक्तिशाली महाविद्या चित्रों में त्रिमूर्ति शामिल हैं।
चित्रकला की इस अनूठी और शानदार शैली ने हमेशा से ही कला प्रेमियों को मंत्रमुग्ध करने में कोई कसर नही छोड़ी। अध्यात्म को अपने में समेटे यह कला मैथिली की सबसे विशेष कलाओं में से एक है।
Author: Pratichi Rai
Editor: Rachita Biswas
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