मिथिला की देन मधुबनी चित्रकला आज जिस तरह अपना अभूतपूर्व छाप वैश्विक पटल पर अंकित कर रहा है, जगदम्बा देवी जैसे कलाकारों के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
मधुबनी चित्रकला वह अनुठी पहल है जो बरसों पहले भुला दिये जाने वाले स्थानीय परंपराओं को जीवंत रखता है।
पीढ़ियों से चले आने वाला इस अनुठी कला ने धरोहर प्रेम, धर्म, समृद्धि तथा उर्वरता के मायनों को अपने भीतर संजोए रखा है।
खासतौर पर धार्मिक उत्सव या किसी शादी समारोह में मधुबनी चित्रकला की उपस्थिति अनिवार्य है ।
१९६२ में जब सूखा भारी त्रासदी बन कर उभरा, भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड ने ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को विषम परिस्थिति से उभारकर व्यवसाय का जरिया प्रदान करने की जिम्मेदारी निपुण डिजाइनर कुलकर्णी जी को सौंपी।
कई कठिनीइयों के बाद कुलकर्णी ने कुल पांच महिला मधुबनी कलाकारों की नियुक्ति की और इनकी सहायता भी करने लगे। इन्हीं पांच कौशल कलाकारों में से एक थीं- जगदम्बा देवी।
जगदम्बा देवी का जन्म वैसे तो २५ फरवरी,१९०१ को मधुबनी के भजपरौल में हुआ था पर उनके जीवन का ज्यादातर समय जीतवारपुर में बीता।
जगदंबा जी ने बहुत छोटी उम्र में ही शादी कर ली थी और उनकी कोई संतान भी नहीं थी।
निसंतान होने के कारण समय बिताने के लिए शादी विवाह जैसे अवसरों में दिवारों में अकसर कोहबर चित्रण करने का उन्हें बहुत शौक था।
बाद में यही कोहबर चित्र उनकी अपार सफलता का द्वार बना और उनके चित्रों को इंदिरा गांधी से भी भरपूर सराहना मिली।
लोग दूर दूर से उनकी कृतियों को देखने आया करते थे।
दिवारों से कागज और कैनवास तक का सफर तय करने के लिए जगदम्बा देवी ने केवल हस्तनिर्मित कागजों का उपयोग किया।
वह अपने चित्रों में भी प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया करती थीं जिसमें की वह लाल रंग का प्रधान रूप से इस्तेमाल कर रमनीक लीला रचती थी।
माना जाता है कि लाल रंग को बनाने के लिए वह गोंद को बकरी के दूध में मिलाती थीं।
देवी- देवताओं तथा धार्मिक किस्सों पर अधारित रहे उनके ज्यादातर चित्र आज दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
गहरे और हल्के रंगों का उचित और निराला संयोजन उनके चित्रों को सर्वश्रेष्ठ बनाता था और शायद रंगों का करिश्माई उपयोग हीं उनके चित्रों को अनुठा बनाता था।
जगदम्बा देवी पूरी दुनिया के सामने मिसाल है क्योंकि उन्होंने बिना किसी स्कूली शिक्षा के भी अपने स्पष्ट नजरिये और दृढ़ संकल्प और जटिल तकनीक के बल पर कला की दुनिया में विश्व भर में परचम लहराया।
वाकई में किसी भी श्रेत्र में कोई भी व्यक्ति अपने अनंत प्रतीभा और सही सोच के साथ अपना लोहा मनवा सकता है।
राष्ट्र पुरस्कार और पद्म श्री से सम्मानित प्रथम मिथिला अथवा मधुबनी चित्रकार के द्वारा रचित अनेकों चित्रों को विभिन्न देशों में संकलित किया गया है।
अपने क्षेत्र से इतना उच्च सम्मान हासिल कर उन्होंने सदा के लिए समृद्धि सुनिश्चित किया। उनके साथ ही सीता देवी और बउआ देवी को भी पुरस्कृत किया गया था।
उनकी कुछ कृतियाँ साबरमती आश्रम में भी प्रदर्शित हैं, जिनका अपना विशिष्ट चरित्र है।
दुर्भाग्यपूर्ण जगदम्बा देवी का १९८४ में स्वर्गवास हो गया लेकिन आज भी उनकी रचनाएँ सबको मंत्रमुग्ध कर रही है और इन अनुपम चित्रों के द्वारा जगदम्बा देवी हमेशा जीवित रहेंगी।
भारतवर्ष , मधुबनी, जो कि केवल गाँवों तक सीमित थी को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए सदैव याद करता रहेगा।
Author: Tanya Saraswati Editor: Rachita Biswas
Sources: https://i.pinimg.com/736x/e9/f1/bb/e9f1bb22d991481f6783eeab28d481e0.jpg https://aalekhan.in/wp-content/uploads/2020/11/Jagdamba-Devi-197x300.jpeg https://lh3.googleusercontent.com/proxy/eDGcnGunWsDN0DqcTFyZyxjut-7i9YQnR22r27XaHAnyFXtAlTeNbRTJGAN1mFivOhydWdbzUWOtOdqg1GynsBpYvDImGlYIR_xPMWe7cHHufzPOizw-jw_b8g0eqwB7d87AkAdsr6J98ofCeKSBHm1EpcmPzl5rObmsoMQ15G1290Ybfyx3gsMMFOVSLryDGqLlYWR5BA https://i.pinimg.com/originals/99/4a/40/994a40e5fc03f6fd5a1c729d16f5cc67.jpg
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