top of page
Writer's pictureRachita Biswas

सोहराई और खोवर: विलुप्त होती एक अनुठी कला

Updated: Jul 15, 2022


शहरी प्रभाव और धूलों की परत से ढक चुका सोहराई और खोवर चित्रकला मुख्य रूप से झारखंड में आदिवासी महिलाओं द्वारा अभ्यासित एक ग्रामीण और पारंपरिक कला है जिसमें झोपड़ी की दीवारों को अनुठी चित्रकला से अलंकृत किया जाता है। 

हालांकि अब यह कागज और कपड़े पर किया जा रहा है और काफी लोग इसे पसंद कर खरीद रहे हैं। सोहराई कला प्रधान रुप से सोहराई या अन्य फसल उत्सवों में बनाई जाती है।


सोहराई और खोवर

गौरैया, मोर, गिलहरी और गाय  सोहराई और खोवर चित्रों का आधार होते हैं। झारखंड के हजारीबाग जिले में प्रचलित यह लोक कला वन जीवन से काफी प्रभावित है और उनके प्रति जागरूकता फैलाने का भी काम कर रहे हैं। 

गौरैया, मोर, गिलहरी और गाय  सोहराई और खोवर चित्रों का आधार होते हैं।

खोवर विवाह कक्षों के अलंकरण को संदर्भित करता है, और सोहराई फसल उत्सव है जिसके लिए मिट्टी की झोपड़ियों पर चित्रकला बनाई जाती है,जिन्हें बारिश के बाद भी सहेज कर रखा जाता है।


यह इश्वर को घन्यवाद करने का सहज तरीका है।

आदिवासी औरतें केवल प्राकृतिक रंगों और अन्य पदार्थ जैसे चारकोल और चिकनी मिट्टी का प्रयोग कर इस अलौकिक कला को दार्शनिक रुप देती हैं।

खोवर में मिट्टी की दीवारों पर कला का निर्माण किया जाता है ।

इसका मुख्य उद्देश्य फसल का सम्मान और स्वागत करना तथा मवेशियों के आगमन का जश्न मनाना है।


झारखंड के हजारीबाग जिले में प्रचलित यह लोक कला
पहले इस पारंपरिक चित्रकला को बनाने के लिए औरते मिस्वाक अथवा दातुन का प्रयोग करतीं थी लेकिन अब सुती कपड़ों का भी इस्तेमाल होने लगा है।


इन चित्रों को बनाने की बहुत लंबी प्रक्रिया है सबसे पहले, दीवार पर सफेद मिट्टी का लेप लगाया जाता है।

मिट्टी जब गिली रहती है तभी चित्रकार अपनी उंगलीयों की सहायता से आकृति उकेरते है।


खोवर में मिट्टी की दीवारों पर कला का निर्माण किया जाता है ।

कलाकार दीवारों पर बैलों, सवारों के साथ घोड़ों और जंगली जानवरों को रंगने के लिए दातुन या कपड़े के फाहे का इस्तेमाल करते हैं, जिन्हें मिट्टी के विभिन्न रंगों में रंगा जाता है ।


मिट्टी में मिश्रित प्राकृतिक रंगों के साथ बनाए गए संयोजन को रंगों के अनुसार काली मिट्टी, चरक मिट्टी, दूधी मिट्टी, लाल मिट्टी (गेरू), और पिला मिट्टी कहा जाता है।


गाय का गोबर, जो कभी घर की दीवारों को लेपने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, अब रंग जोड़ने के लिए उपयोग किया जाता है क्योंकि पहले से लगी विपरीत रंग की सफेद मिट्टी के परत के ऊपर काली रूपरेखा स्पष्ट होती है।


मिट्टी की दीवारों पर चित्रित यह अद्भुत कला एक विरासत है जो मुलतः मां से बेटी को धरोहर के रुप में प्राप्त होता है। आमतौर पर कलाकार अपनी कल्पना और स्मृति से चित्र उकेरता है।दीवारों के निचले हिस्सों में फूलों के संकीर्ण क्षैतिज पट्टी और ज्यामितीय रूपों के संयोजन से सजाए जाते हैं।


कलाकार का अपना अनुभव और प्रकृति के साथ अटूट संबंध और उसके प्रति समर्पण चित्रों के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रेरणा के स्रोत हैं।


सोहराई और खोवर

चुकिं अब  ज्यादातर  घर  ईंट और सीमेंट  की सहायता से बनते हैं, यह अनुठी कला विलुप्त होती जा रही है। हम सबको अपने इस पारंपरिक कला को  आधुनिक रुप से सहेज कर रखना होगा ताकि आने वाली पीढ़ी भी प्रकृति से इसी रुप से लगाव रखे। यह गाँवों और आदिवासी समुदायों के विकास का भी अनुठा जरिया बन सकता है। 

Author: Tanya Saraswati Editor: Rachita Biswas


sources:





149 views0 comments

Related Posts

See All

Comentários


bottom of page