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Writer's pictureRachita Biswas

रेखाओं और बिंदुओं का अनूठा मेल

Updated: Jul 15, 2022

मधुबनी पेंटिंग की लोकप्रियता की शुरुआत के दौरान, सिर्फ ब्राह्मण महिलाएं ही इस कला की चालक थीं। हालांकि, लगभग दस साल बाद, कायस्थ समुदाय की महिलाओं ने आगे आकर कचनी शैली नामक एक नई शैली पेश की। इसे आमतौर पर लाइन आर्ट के नाम से भी जाना जाता है।

मधुबनी पेंटिंग

कचनी की उत्पत्ति मधुबनी के क्रांति गांव के एक छोटे से शहर से हुई है। इस शैली की मार्ग निर्माता 1928 में बिहार के मिथिला क्षेत्र में जन्मी, गंगा देवी रही हैं। उन्हें 1976 में राष्ट्रीय पुरस्कार और पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।


कचनी की उत्पत्ति मधुबनी के क्रांति गांव के एक छोटे से शहर से हुई है।

कचनी कला मधुबनी कला का प्रतिनिधित्व करने में एक विस्तृत भूमिका निभाती है, और यह अनूठी शैलियों में से एक है। एक ख़ास बात जो कचनी को बाकी शैलियों से अलग बनाती है, वह है भरने के बजाय प्रतिपादन। पूरी चित्रकला में बारीकी से खींची गई समानांतर रेखाओं और छोटे बिंदुओं का उपयोग किया जाता है। पूरी कला विभिन्न प्रकार के लाइन वर्क पर आधारित है।


चित्रों को अक्सर मोनोक्रोमैटिक रूप- यानी कि सिर्फ दो रंगों से ही रंगा जाता है। कभी-कभी बिना रंग के भी छोड़ दिया जाता है। ज्यादातर काले रंग और सिंदूर के लाल रंग का प्रयोग किया जाता है। सिंदूर के अलावा, आमतौर पर नरम रंगों का उपयोग लाइनों को भरने के लिए किया जाता है जिससे चित्रकला देखने में आँखों को सुकून मिलता है। मुख्य रूप से फूलों, जानवरों और प्राकृतिक पहलुओं की अन्य विशेषताओं को इस शैली के माध्यम से दर्शाया जाता है।


कचनी कला मधुबनी कला

जटिल विवरणो में गुँथी मधुबनी पेंटिंग की यह अनूठी शैली लोगों को अपने सौंदर्य से मोहित करने में सफ़ल होती आई है।


Author: Pratichi Rai Editor: Rachita Biswas


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